25/08/2023
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30/07/2023
हमने कभी वेदों का अध्ययन नही किया,हमने कभी गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपनाया,हमने आयुर्वेद में कोई अनुसंधान नही किया,हमने संस्कृत भाषा को कोई महत्व नही दिया ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया.
अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.
क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती.
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है?
लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है|
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए|
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए|
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है|
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है|
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है|
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है|
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है|
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है|
अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा|
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा|
जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा|
सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|
ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है
लेखक अभय
11/07/2023
What app quries related to gurukul on 073377 47995
09/07/2023
Hare Krishna!! Gurukul being epicentre of revival of Varnashrama dharma or Sanatana dharma project, we have initiated this great task with our humble beginning. We invite participation of all sort from the members of the group to please vaishnavas, guru and Gauranga!! To spread the glories of Lord and His message GAUR SHIKSHA throughout the world!! Srila Prabhupada ki Jaya!!
Please post only relevant content!!
Your servants in the service of Srila Prabhupada!!