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26/01/2022
12/01/2022

स्वामी विवेकानन्द (बांग्ला: স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: 12 जनवरी 1863 - मृत्यु: 4 जुलाई 1902) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थपरिवार में जन्मे विवेकानन्द आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरतमन्दो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धान्तों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानन्द को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

23/03/2021

शहीद-ए-आजम भगत सिंह को फांसी तय तारीख से 1 दिन पहले ही दे दी गई थी, जानें क्या थी वजह
Bhagat Singh Hanging Date: भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी का जो दिन तय हुआ था वह 24 मार्च 1931 का दिन था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अपने फैसले में बदलाव कर उनकी फांसी का समय तय समय से कुछ घंटे पहले कर दिया था।

भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी।
लेकिन उनके फांसी के लिए तय दिन 24 मार्च 1931 था।
भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के साथ हंसते हंसते लोटपोट हो गए

देश के लिए अपनी जान हंसते-हंसते कुर्बान कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 के दिन फांसी की सजा दी गई थी मगर उनको फांसी का जो दिन तय हुआ था वह 24 मार्च 1931 का दिन था लेकिन अंग्रेजों ने उसमें बदलाव कर दिया और निर्धारित तारीख और समय से पहले उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया, देश की आजादी के लिए भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए और देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए ऐसी मिसाल बहुत कम ही देखने को मिलती है।

बताते हैं कि इन तीनों वीर सपूतों को फांसी दिए जाने की खबर से देश में लोग भड़के हुए थे तीनों की फांसी को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहे थे और इससे अंग्रेज सरकार डर गई थी उन्हें लगा कि माहौल बिगड़ सकता है, इसलिए उन्होंने फांसी के दिन और टाइमिंग में ये बदलाव किया था।

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक 23 मार्च 1931 के दिन जेल के भीतर सुबह से ही चहल-पहल शुरु हो गई थी। अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह को कई संगीन आरोपों में गिरफ्तार कर उन्हें फांसी की सजा का फरमान सुनाया था। सजा वाले दिन भगत सिंह की ऑखों में फांसी का तनिक भी डर नहीं था वो पहले की ही तरह निडर होकर घूम रहे थे और कैदियों से बातचीत कर रहे थे।

बताते हैं कि 23 मार्च,1931 समय 4 बजे लाहौर सेंट्रल जेल के वॅार्डन ने सभी कैदियों को आदेश दिया कि सभी अपने-अपने बैरक में लौट जाएं यह सुनकर सभी कैदी हैरत में डाल दिया था। वॅार्डन के आदेश पर सभी कैदी वापिस अपने बैरक में लौट तो आए लेकिन एक सवाल सभी को परेशान करता रहा। तभी जेल के नाई ने हर कमरे के पास से गुजरते हुए दबी आवाज में बताया कि आज रात भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी होने वाली है।

फांसी की तारीख और समय बदलने से कैदी बेहद गुस्से में थे
इस खबर से सभी कैदी बेहद गुस्से में भर गए कि ऐसे कैसे ब्रिटिश सरकार बिना कानूनी कार्रवाई को पूरा करे बिना किस तरह से ऐसा फैसला सुना सकती है। वहीं शहीद-ए-आजम भगत सिंह को अगले दिन सुबह 4 बजे की जगह उसी दिन शाम 7 बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।

ये सुनते ही भगत सिंह ने कहा कि क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे कुछ देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर लाया गया।

तीनों का वज़न लिया गया और कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें
फिर उन तीनों का वज़न लिया गया और इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए, लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।

जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय सभी को अचानक ज़ोर-ज़ोर से 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आज़ाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।

सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी
भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख़्ते से 'इंक़लाब ज़िदाबाद' का नारा लगाएंगे, सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख़्तों को पैर मार कर हटा दिया।

काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे। अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, ऐसे ही देश के लिए ये तीनों नौजवानों ने अपनी जान न्यौछावर कर दी ये देश के युवाओं के लिए बहुत बड़ी मिसाल बन गई कि देश से अपनी मातृभूमि से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

25/01/2021

विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक भारत की बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। कहा जाता है कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। बता दें कि जब देश को सन् 1950 में 26 जनवरी को संविधान मिला, इसके बाद ही भारत एक लोकतांत्रिक और गणतंत्र देश घोषित हुआ। इस दिन भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के बाद देश को उसका संविधान सौंपा था। तब से हर साल ये दिन लोगों के लिए बेहद गौरवमयी होता है जिसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

31/10/2020

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था।
लौहपुरुष' सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है।

आइए जानते हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में 10 बातें-

1. सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया।
2. सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।


3. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकि‍न उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी।

4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' और 'लौहपुरुष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

5. इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।

6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया।

7. गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

8. सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया।

9. सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।

10. आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए और साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।

जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया, किंतु कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को अपने पास रख लिया।

15/10/2020

ज़िन्दगी से यही सीखा है मेहनत करो रुकना नहीं हालत कैसे भी हो किसी के सामने झुकना नहीं

28/09/2020

भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907[a] , मृत्यु:23 मार्च 1931 भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया....

24/09/2020

Untold Story

23/09/2020

दोस्तों पेज को लाइक जरूर करें आपके सपोर्ट की बहुत जरूरत है। बहुत जल्द आपको इस पेज पर एजुकेशन से रिलेटेड और भी वीडियो मिलेंगे प्लीज सपोर्ट बनाए रखें। धन्यवाद।

22/09/2020

जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार-बार चुभे
उसे एक बार हथौड़ी बन कर ठोक देना चाहिए

21/09/2020

मनुष्य में द्रढ़ता होनी चाहिए जिद नहीं,
बहादुरी होनी चाहिए जल्दबाजी नहीं,
दया होनी चाहिए कमजोरी नहीं,
ज्ञान होना चाहिए अहंकार नहीं…!!

20/09/2020

Mobile radiation से बचने के लिये जरूर देखें

20/09/2020

रख हौसला वो मन्ज़र भी आएगा, प्यासे के पास चल के समंदर भी आयेगा,

18/09/2020

अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो, तरीके बदलो.. ईरादे नही

18/09/2020

दर्द का एहसास।

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