#सिंधु_घाटी_सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता (अंग्रेज़ी:Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी।
इस सभ्यता का उदय सिंधु नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु सभ्यता तथा इसके प्रथम उत्खनित एवं विकसित केन्द्र हड़प्पा के नाम पर हड़प्पा सभ्यता, आद्यैतिहासिक कालीन होने के कारण आद्यैतिहासिक भारतीय और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है।
#सभ्यता_का_खोज
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला।
#सभ्यता_का_विस्तार
अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में 'जम्मू' के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने 'भगतराव' तक और पश्चिमी में 'मकरान' समुद्र तट पर 'सुत्कागेनडोर' से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल 'सुत्कागेनडोर', पूर्वी पुरास्थल 'आलमगीर', उत्तरी पुरास्थल 'मांडा' तथा दक्षिणी पुरास्थल 'दायमाबाद' है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या 'सुमेरियन सभ्यता' से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
#मुख्य_स्थल
#हड़प्पा : हड़प्पा 6000-2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। मोहनजोदड़ो, मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में हड़प्पा में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। इसकी खोज 1920 में की गई। वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है। सन् 1857 में लाहौर मुल्तान रेलमार्ग बनाने में हड़प्पा नगर की ईटों का इस्तेमाल किया गया जिससे इसे बहुत नुक़सान पहुँचा।
#मोहनजोदाड़ो : मोहन जोदड़ो, जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। हड़प्पा, मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में मोहन जोदड़ो में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है।
#चन्हूदड़ों : मोहनजोदाड़ो के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से 'सैंधव संस्कृति' के साक्ष्य मिलते हैं।
#लोथल : यह गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में 'भोगावा नदी' के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई।
#रोपड़ : पंजाब प्रदेश के 'रोपड़ ज़िले' में सतलुज नदी के बांए तट पर स्थित है। यहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम उत्खनन किया गया था। इसका आधुनिक नाम 'रूप नगर' था। 1950 में इसकी खोज 'बी.बी.लाल' ने की थी।
#कालीबंगा : यह स्थल राजस्थान के गंगानगर ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
#सूरकोटदा : यह स्थल गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
#आलमगीरपुर (मेरठ) : पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में 'यज्ञ दत्त शर्मा' द्वारा की गयी।
#रंगपुर (गुजरात) : गुजरात के काठियावाड़ प्राय:द्वीप में भादर नदी के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में 'ए. रंगनाथ राव' द्वारा की गई। यहाँ पर पूर्व हडप्पा कालीन सस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यहाँ उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं।
#बणावली (हरियाणा) : हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं। हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में 'रवीन्द्र सिंह विष्ट' के नेतृत्व में की गयी। #अलीमुराद (सिंध प्रांत) : सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआँ, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।
#सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान) : यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे स्थित है।
हड़प्पाकालीन सभ्यता से सम्बन्धित कुछ नवीन क्षेत्र
खर्वी (अहमदाबाद) कुनुतासी (गुजरात) बालाकोट (बलूचिस्तान) अल्लाहदीनों (अरब महासागर) भगवानपुरा (हरियाणा) देसलपुर (गुजरात) रोजदी (गुजरात)
िर्माण_योजना
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।
नगर निर्माण एवं भवन निर्माण :- सभी प्रमुख नगर जिनमे हड़प्पा मोहन जोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा सभी प्रमुख नगर नदियों के तट पर बसे थे इन नगरों में सुरक्षा के लिये चारो ओर परकोटा दीवार का निर्माण कराया जाता था । प्रत्येक नगर में चौड़ी एवं लम्बी सड़के थी, चौड़ी सड़के एक दूसरें शहरों को जोड़ती थी । सिन्धु घाटी सभ्यता में कच्चे पक्के, छोटे बड़े सभी प्रकार के भवनों के अवशेष मिले है । भवन निर्माण में सिन्धु सभ्यता के लोग दक्ष थे । इसकी जानकारी प्राप्त भवनावशेषों से होती है । इनके द्वारा निर्मित मकानो में सुख-सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी । भवनों का निर्माण भी सुनियोजित ढंग से किया जाता था । प्रकाश व्यवस्था के लिये रोशनदान एवं खिड़कियां भी बनार्इ जाती थी । रसोर्इ घर, स्नानगृह, आंगन एवं भवन कर्इ मंजिल के होते थे । दीवार र्इटो से बनार्इ जाती थी । भवनो, घरों में कुंये भी बनाये जाते थे । लोथल में र्इटो से बना एक हौज मिला है ।
#विशाल_स्नानागार :- मोहन जादे ड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार मिला जो अत्यन्त भव्य है । स्नानकुण्ड से बाहर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी । समय-समय पर जलाशय की सफार्इ की जाती थी । स्नानागार के निर्माण के लिये उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग किया गया था, इस कारण आज भी 5000 वर्ष बीत जाने के बाद उसका अस्तित्व विद्यमान है ।
#अन्न_भण्डार :- हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहां के किले के राजमार्ग में दानेो ओर 6-6 की पक्तियॉं वाले अन्न भण्डार के अवशेष मिले है, अन्न भण्डार की लम्बार्इ 18 मीटर व चौड़ार्इ 7 मीटर थी । इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था, ऐसा लगता था कि जलमार्ग से अन्न लाकर यहां एकत्रित किया जाता था । सम्भवत: उस समय इस प्रकार के विशाल अन्न भण्डार ही राजकीय कोषागार के मुख्य रूप थे ।
िकास_प्रणाली :- सिन्धु घाटी की जल निकास की याजे ना अत्यधिक उच्च कोटि की थी । नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था सड़क और गलियों के दोनो ओर र्इटो की पक्की नालियॉ बनी हुर्इ थी । मकानों की नालियॉं सड़को या गलियों की नालियों से मिल जाती थी । नालियों को र्इटो और पत्थरों से ढकने की भी व्यवस्था थी । इन्हें साफ करने स्थान-स्थान पर गड्ढ़े या नलकूप बने हुये थे । इस मलकूपों में कूडा करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अवरूद्ध नहीं होता था । नालियों के मोडो और संगम पर र्इटो का प्रयोग होता था ।
#सड़कें :- सिंधु सभ्यता में सड़कों का जाल नगर को कई भागों में विभाजित करता था। सड़कें पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। मोहनजोदाड़ो में पाये गये मुख्य मार्गो की चौड़ाई लगभग 9.15 मीटर एवं गलियां क़रीब 3 मीटर चौड़ी होती थी। सड़को का निर्माण मिट्टी से किया गया था। सड़को के दोनो ओर नालियों का निर्माण पक्की ईटों द्वारा किया गया था और इन नालियों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर ‘मानुस मोखे‘बनाये गये थे। नलियों के जल निकास का इतना उत्तम प्रबन्घ किसी अन्य समकालीन सभ्यता में नहीं मिलता ।
#सामाजिक_जीवन -
हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता एक मजबतू कृषि ढांचे पर ही पनप सकती थी । हड़प्पा के किसान नगर की दीवारों के समीप नदी के पास मैदानों में रहते थे । यह शिल्पकारों, व्यापारियों और अन्य शहर में रहने वालों के लिए अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे । कृषि के अलावा ये लोग बहुत सी अन्य कलाओं में भी विशेष रूप से निपुण थे । घरों के आकारों में भिन्नता को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा समाज वर्गो में बंटा था ।
#भोजन :- हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल, मटर आदि का उपयोग करते थे । लोग मांसाहारी भी थे । विभिन्न जानवरों का शिकार कर रखते थे । फलो का प्रयोग भी करते थे । खुदार्इ से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है । पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे ।
#वस्त्र :- सिन्धु घाटी के निवासियों की वेष भूषा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महिलायें घाघरा साड़ी एवं पुरूष धोती एवं पगड़ी का प्रयोग करते थे । स्वयं हाथ से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे।
#आभूषण एवं सौदर्य प्र्साधन :- स्त्री, पुरूष दोनो आभूषण धारण करते थे । आभषूणों में हार कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, भुजबन्ध, हंसली, कडे, करधनी, पायजेब आदि विशेष उल्लेखनीय है । कर्इ लड़ी वाली करधनी और हार भी मिले है । आभूषण सोने, चॉदी, पीतल, तांबा, हाथी दांत, हड्डियों और पक्की मिट्टी के बने होते है । अमीर बहुमूल्य धातुओं और जवाहरातों के आभूषण धारण करते थे । स्त्री पुरूष दोनो श्रृंगार प्रेमी थे धातु एवं हाथी दांत की कंघी एवं आइना का प्रयोग करते थे । केश विन्यास उत्तम प्रकार का था खुदार्इ से काजल लगाने की एवं होठों को रंगने के अनेक छोटे-छोटे पात्र मिले हैं ।
#मनोरंजन :- सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरजं न के लिये विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जानवरों की दौड़ शतरंज खेलते थे, नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है । मिट्टी एवं पत्थर के पांसे मिले है
#प्रौद्योगिकी ज्ञान :- सिन्धु सभ्यता के लोगों का भवन निर्माण, विशाल अन्न भण्डार जल निकासी व्यवस्था, सड़क व्यवस्था देखकर उनकी तकनीकी ज्ञान बहुत रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है, वे मिश्रित धातु बनाना जानते थे, उनकी मूर्तियॉं एवं आभूषण बहुत खुबसूरत थे।
#मृतक कर्म :- इस काल में भी शवों के जमीन में दफनाया जाता था । शवों के साथ पुरा पाषाण काल के समान भोजन, हथियार, गृह-पात्र तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ भी साथ में रख दी जाती थी । मृतकों की कब्रों के ऊपर बड़े-बड़े पत्थर भी रख दिये जाते थे, जिनको रखने का मुख्य उद्देश्य मृतकों को सम्मान देना था । कुछ स्थलों पर शवो को जलाने की प्रथा का भी प्रचलन हो गया था । जब शव जल जाता था तो उसकी राख को मिट्टी के बने घड़ों में रखकर सम्मान के साथ जमीन में गाड़ दिया जाता था ।
#चिकित्सा विज्ञान :- सिन्धु सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परिचित थे, तथा हिरण, बारहसिंघे के सीगों, नीम की पत्तीयों एवे शिलाजीत का औषधियों की तरह प्रयोग करते थे, उल्लेखनीय है कि सिन्धु सभ्यता में खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के उदाहरण भी काली, बंगा एवं लोथल से प्राप्त होते है । समुद्र फेन (झाग) भी औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
आर्थिक जीवन
#कृषि_एवं_पशुपालन :- आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत उपजाऊ था। सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी। गाँव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल के महीने में गेहूँ और जौ की फ़सल काट लेते थे। यहाँ कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे।
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।
#व्यापार :- यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील (मृन्मुद्रा), एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। वे चक्के से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दलमुन और माकन। दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है।
#उद्योग-धंधे :- यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था। उसका विदेशों में भी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था,अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
कला का विकास
#मूर्तिकला या प्रतिमाएं :- हडप़्पा सभ्यता के लोग धातु की सुन्दर प्रतिमाएं बनाते थे । इनका सबसे सुन्दर नमूना कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति है । खुदार्इ में सेलखड़ी की बनी एक दाढ़ी वाले पुरूष की एक अर्ध प्रतिमा प्राप्त हुर्इ है । उस के बांये कन्धे से दांये हाथ के नीचे तक एक अलंकृत दुशाला और माथे पर सरबन्ध है । पत्थर की बनी हुर्इ दो पुरूषों की प्रतिमाए हड़प्पा की लघु मूर्तिकला का उदाहरण है ।
#चित्रकला :- अनेक बर्तनों तथा मोहरो पर बने चित्रों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी के लोग चित्रकला में अत्यधिक प्रवीण थे । मुहरो पर सांडो और भैंसो की सर्वाधिक कलापूर्ण ढंग से चित्रकारी की गर्इ है । वृक्षों के भी चित्र बनाये गये है ।
#मुद्रा कला :- हड़प्पा की खुदार्इ में विभिन्न प्रकार की मुद्रायें मिली है ये मुद्रायें वर्गाकार आकृति की है जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र बने है तथा दूसरी ओर लेख है । ये हांथी दांत व मिट्टी के लगभग 3600 मुहरे प्राप्त हुर्इ है ।
#धातु कला :- सिन्धु सभ्यता की कलाओं में धातु कला जिसमें विशेष स्वर्ण कला का उल्लेख मिलता है । यहां के सोनारों द्वारा गलार्इ, ढलार्इ, नक्कासी जोड़ने आदि का कार्य किया जाता था । सिन्धु काल की कलाकृतियां इतनी विलक्षण और मनोहर है कि ऐसी कारीगरी पर आज का सुनार भी गर्व कर सकता है ।
#पात्र निर्माण कला :- खुदार्इ में अनेक ताम्र एवं मिट्टी के पात्र मिले है जो बहुत सुन्दर एवं उच्च कोटि के है यह वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार में मिले है । ये पानी भरने एवं अनाज रखने के काम आते थे ।
ताम्र्रपात्र निर्माण कला :- खुदार्इ में अनेक ताबें के पात्र मिले है ये वर्गाकार, आयताकार में है जिसमें चित्रकारी है ।
#वस्त्र निर्माण कला :- सिन्धु सभ्यता की खुदार्इ की गइर् तो तकलियॉ प्राप्त हुर्इ है जिनसे सूत कातने के काम में भी यहां के निवासी निपुण थे ।
#नृत्य_तथा_संगीत_कला :- इस बात के भी प्रमाण हैं कि सिन्धुवासी नृत्य तथा संगीत से परिचित थे । पहले हम कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति का उल्लेख कर आये है । इससे स्पष्ट है कि सिन्धु प्रदेश में नृत्य कला का प्रचार था । इस मूर्ति की भावभंगिमा वैसी ही हृदयग्राही है जैसी कि ऐतिहासिक युग की मूर्तियों में देखने को मिलती है । बर्तनों पर कुछ ऐसे चित्र मिले हैं जो ढोल और तबले से मिलते-जुलते हैं । अनुमान है कि सिन्धुवासी वाद्ययन्त्र भी बनाना जानते थे ।
#लिपि_या_लेखन_कला :- मेसोपोटामिया के निवासियों की तरह हड़प्पा वासियों ने भी लेखन कला का विकास किया । यद्यपि इस लिपि के पहले नमूने 1853 में प्राप्त हुये थे पर अभी तक विद्वान इसका अर्थ नहीं निकाल पाए हैं । कुछ विद्वानों ने तो इसे पढ़ने के लिए कम्प्यूटर का भी उपयोग किया पर वह भी असफल हैं । इस लिपि का द्रविड़, संस्कृत या सुमेर की भाषाओं से संबंध स्थापित करने के प्रयत्नों का भी कोर्इ संतोषजनक परिणाम नहीं निकला है । हड़प्पा की लिपि को चित्र लिपि माना जाता है । इस लिपि में हर अक्षर एक चित्र के रूप में किसी ध्वनी, विचार या वस्तु का प्रतीक होता है । लगभग 400 ऐसे चित्रलेख देखने में आये हैं। यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है अत: हम हड़प्पा संस्कृति के साहित्य, विचारों या शासन व्यवस्था के विषय में अधिक नहीं कह सकते हैं । पढ़ना व लिखना शायद एक वर्ग तक सीमित था ।
#धार्मिक_जीवन
हड़प्पा के लोग एक ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करते थे
शिव की पूजा :- मोहनजोदड़ों से मैके को एक मुहर प्राप्त हुई जिस पर अंकित देवता को मार्शल ने शिव का आदि रुप माना आज भी हमारे धर्म में शिव की सर्वाधिक महत्ता है। मातृ देवी की पूजा:- सैन्धव संस्कृति से सर्वाधिक संख्या में नारी मृण्य मूर्तियां मिलने से मातृ देवी की पूजा का पता चलता है। यहाँ के लोग मातृ देवी की पूजा पृथ्वी की उर्वरा शक्ति के रूप में करते थे (हड़प्पा से प्राप्त मुहर के आधार
#मूर्ति पूजा :- हड़प्पा संस्कृति के समय से मूर्ति पूजा प्रारम्भ हो गई हड़प्पा से कुछ लिंग आकृतियां प्राप्त हुई है इसी प्रकार कुछ दक्षिण की मूर्तियों में धुयें के निशान बने हुए हैं जिसके आधार पर यहाँ मूर्ति पूजा का अनुमान लगाया जाता है। हड़प्पा काल के बाद उत्तर वैदिक युग में मूर्ति पूजा के प्रारम्भ का संकेत मिलता है हलाँकि मूर्ति पूजा गुप्त काल से प्रचलित हुई जब पहली बार मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
#जल पूजा :- मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्नानागार के आधार पर।
#सूर्य पूजा :- मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्वास्तिक प्रतीकों के आधार पर। स्वास्तिक प्रतीक का सम्बन्ध सूर्य पूजा से लगाया जाता है
#नाग पूजा: मुहरों पर नागों के अंकन के आधार पर।
#वृक्ष पूजा:- मुहरों पर कई तरह के वृक्षों जैसे-पीपल, केला, नीम आदि का अंकन मिलता है। इससे इनके धार्मिक महत्ता का पता चलता है।
GK & GS
follow for various types of knowledge
Operating as usual
#प्राचीन_भारतीय_इतिहास_की_जानकारी के साधन
प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी के साधनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- साहित्यिक साधन और पुरातात्विक साधन, जो देशी और विदेशी दोनों हैं। साहित्यिक साधन दो प्रकार के हैं- धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। धार्मिक साहित्य भी दो प्रकार के हैं - ब्राह्मण ग्रन्थ और अब्राह्मण ग्रन्थ। ब्राह्मण ग्रन्थ दो प्रकार के हैं - श्रुति जिसमें वेद, ब्राह्मण, उपनिषद इत्यादि आते हैं और स्मृति जिसके अन्तर्गत रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतियाँ आदि आती हैं। लौकिक साहित्य भी चार प्रकार के हैं - ऐतिहासिक साहित्य, विदेशी विवरण, जीवनी और कल्पना प्रधान तथा गल्प साहित्य। पुरातात्विक सामग्रियों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - अभिलेख, मुद्राएं तथा भग्नावशेष स्मारक।
साहित्यिक साधन
1. धार्मिक साहित्य
2. ब्राह्मण ग्रंथ
3. श्रुति (वेद ब्राह्मण उपनिषद् वेदांग)
4. स्मृति (रामायण महाभारत पुराण स्मृतियाँ)
5. अब्राह्मण ग्रंथ
6. लौकिक साहित्य
7. ऐतिहासिक
8. विदेशी विवरण
9. जीवनी
10. कल्पना प्रधान तथागल्प साहित्य
पुरातात्विक साधन
अभिलेख
मुद्राएँ
भग्नावशेष स्मारक
साहित्यिक साधन
#वेद
ऐसे ग्रन्थों में वेद सर्वाधिक प्राचीन हैं और वे सबसे पहले आते हैं। वेद आर्यों के प्राचीनत ग्रन्थ हैं जो चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से आर्यों के प्रसार; पारस्परिक युद्ध; अनार्यों, दासों, दासों और दस्युओं से उनके निरंतर संघर्ष तथा उनके सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक संगठन की विशिष्ट मात्रा में जानकारी प्राप्त होती है। इसी प्रकार अथर्ववेद से तत्कालीन संस्कृति तथा विधाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
#ब्राह्मण
वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं की गद्य टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता है। पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं। ऐतरेय के अध्ययन से राज्याभिषेक तथा अभिषिक्त नृपतियों के नामों का ज्ञान प्राप्त होता है। शथपथ के एक सौ अध्याय भारत के पश्चिमोत्तर के गान्धार, शाल्य तथा केकय आदि और प्राच्य देश, कुरु, पांचाल, कोशल तथा विदेह के संबंध में ऐतिहासिक कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं। राजा परीक्षित की कथा ब्राह्मणों द्वारा ही अधिक स्पष्ट हो पायी है।
#उपनिषद
उपनिषदों में ‘बृहदारण्यक’ तथा ‘छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इन ग्रन्थों से बिम्बिसार के पूर्व के भारत की अवस्था जानी जा सकती है। परीक्षित, उनके पुत्र जनमेजय तथा पश्चातकालीन राजाओं का उल्लेख इन्हीं उपनिषदों में किया गया है। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था। आर्यों के आध्यात्मिक विकास प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं।
#वेदांग
युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं की शाखाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है। वे ये हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दशास्त्र तथा ज्योतिष। वैदिक शाखाओं के अन्तर्गत ही उनका पृथकृ-पृथक वर्ग स्थापित हुआ और इन्हीं वर्गों के पाठ्य ग्रन्थों के रूप में सूत्रों का निर्माण हुआ। कल्पसूत्रों को चार भागों में विभाजित किया गया-श्रौत सूत्र जिनका संबंध महायज्ञों से था, गृह्य सूत्र जो गृह संस्कारों पर प्रकाश डालते थे, धर्म सूत्र जिनका संबंध धर्म तथा धार्मिक नियमों से था, शुल्व सूत्र जो यज्ञ, हवन-कुण्ठ बेदी, नाम आदि से संबंधित थे। वेदांग से जहाँ एक ओर प्राचीन भारत की धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त होता है, वहाँ दूसरी ओर इसकी सामाजिक अवस्था का भी।
#स्मृतियाँ
स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बंधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।
#महाकाव्य
#रामायण: रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान संस्कृत भाषा में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड एवं उत्तराकाण्ड नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम भारत से बाहर चीन में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।
#महाभारत: महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रास्थानिक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
#पुराण
प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायु पुराण 5. भागवत पुराण 6. नारदीय पुराण, 7. मार्कण्डेय पुराण 8. अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 11. लिंग पुराण 12. वराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14. वामन पुराण 15. कूर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरुड़ पुराण और 18. ब्रह्माण्ड पुराण
#बौद्ध साहित्य
बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपिटक‘ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक।
#जैन साहित्य
ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।
विदेशियों के विवरण
यूनानी-रोमन लेखक
चीनी लेखक
अरबी लेखक
#पुरातत्त्व
पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - इन्द्र, मित्र, वरुण, नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।
#चित्रकला
चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।
नौकरी या स्टार्टअप क्या बेहतर है। जाने विकास सर से।।।।
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चपरासी का सैलरी सुनकर जज साहब हुए आगबबूला, दूसरे पक्ष के वकील को जमकर लताड़ा...! Patna High Court
बिहार में माफिया का ही जलवा हैं। विद्याथिर्यों की जवानी और कठिन मेहनत को बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ता।
विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की समस्या का सामना कर के परीक्षा केंद्र पहुँचता हैं परीक्षा देने लेकिन परीक्षा केंद्र के कुव्यवस्था और माफियाओं के आपसी मेलजोल विद्यार्थियों के सपनो पर पानी फेर देता हैं।
23-12-2023 को बिहार सचिवालय के दोनों पालियों में आयोजित परीक्षा का पेपर लीक होना वर्तमान बिहार सरकार के मुंह मे तमंचा हैं।Tejashwi Yadav Sushil Kumar Modi
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ये तस्वीर मधुबनी रेलवे स्टेशन का है, जोरदार ठंड और कुहासे के बीच छात्र मधुबनी पहुंचे हैं सचिवालय सहायक की परीक्षा देने के लिए।
खान सर का आजकल की मैडम लोगों से request
dekhiye kya hua jab khan sir ne pahli bar churail dekha
अगर सहमत हैं तो share करे 🙏🙏
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"मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग" में आगामी भर्ती
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