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The Great Wall of China चीन की दीवार (YKV fact)
Mehrangarh Jodhpur मेहरानगढ़ जोधपुर (YKV fact)
Acropolis of Athens एथेंस का एक्रोपोलिस (YKV fact)
The Great Pyramid of Giza (गीज़ा के महान पिरामिड) YKV fact
दुनिया के सात अजूबों में शामिल मिस्र का ग्रेट गीजा पिरामिड इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. इसका सदियों पुराना इतिहास और इसकी बनावट अाज भी सभी को हैरान कर देती है.
आइए जानें गीजा पिरामिड से जुड़े कुछ मजेदार तथ्य :
- दुनिया के 7 अजूबों में गीजा का महान पिरामिड सबसे पुराना है.
- यह पिरामिड 2560 ईसा पूर्व के करीब बनवाया गया था. यह 3, 800 सालों से दुनिया की सबसे ऊंची बनावट है.
- प्राचीन मिस्र के कुफू पिरामिड को महान गीजा पिरामिड के नाम से जाना जाता है. इसकी लंबाई 481 फुट (146 मीटर) है.
- गीजा पिरामिड का बेस (आधार) 55,000 m2 (592,000 स्क्वायर फुट) है. इसका एक-एक कोना 20,000 m2 (218, 000 स्क्वायर फुट) क्षेत्र में बना है.
- महान पिरामिड में लगभग 2,300,000 पत्थर ब्लॉक्स का इस्तेमाल हुआ था जिनका वजन करीब 50 टन है.
- मिस्र के ये महान पिरामिड ऐसी जगह बने हैं कि इन्हें इजराइल के पहाड़ों से भी देखा जा सकता है और माना जाता है कि ये चांद से भी दिखते हैं.
- इसमें 2.3 मिलियन लाइमस्टोन ब्लॉक्स और ग्रेनाइट पत्थर लगे हैं. सबसे बड़ा ग्रेनाइट पत्थर राजा के चैम्बर में मिला था जिसका वजन 25 से 80 टन है.
- यह पिरामिड 10 से 20 सालों में बनकर तैयार हुए. इसे मिस्र के राजा फराओ कुफू ने बनवाया था.
The Great Pyramid of Giza (गीज़ा के महान पिरामिड) YKV fact
मिस्र के पिरामिड
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The Pizza ki kahani ( हिंदी में ) motivational
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great Barrier Reef कोरल रीफ ग्रेट बैरियर रीफ
ग्रेट बैरियर रीफ न केवल पृथ्वी पर सबसे रंगीन स्थानों में से एक है बल्कि ग्रह की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली भी है। यह आकर्षक प्रणाली 400 प्रकार के प्रवाल, 900 से अधिक द्वीपों, 2,000 से अधिक प्रकार के पौधों और यहां तक कि समुद्री गाय जैसे समुद्री जीवन की कुछ लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है। लगभग 133,000 वर्ग मील में फैला विशाल ग्रेट बैरियर रीफ बाहरी अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।
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Easter Island chile Kings landing ईस्टर आईलैंड किंग्स लैंडिंग
यह दूर-दराज का पॉलिनेशियन द्वीप अपनी 887 जीवित स्मारकीय मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। 10वीं शताब्दी के मंदिरों के साथ, परिदृश्य किसी अन्य के विपरीत है जिसे आपने कभी नहीं देखा होगा।
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Petra Jordan पेट्रा विश्व के नए 7 अजूबों में से एक है
जुलाई 2007 में पेट्रा को पेट्रा विश्व के नए 7 अजूबों की लिस्ट में शामिल किया गया। यूनेस्को ने 1985 में इसे विश्व धरोहर में शामिल करने के बाद इसे ‘मनुष्य की पारंपरिक विरासत की सबसे महंगी पारंपरिक संपत्ति’ के रूप में भी परिभाषित किया।
पेट्रा का नाम शायद आपने सुना होगा, क्योंकि यह दुनिया के सात अजूबों में से एक के रूप में जाना जाता है। दरअसल, यह जॉर्डन में स्थित एक एतिहासिक नगर है, जो पत्थरों से तराशी गई अपनी इमारतों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां के लाल रंग के पत्थरों की वजह से ही इसे 'रोज सिटी' के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व में नबातियन साम्राज्य ने पेट्रा क अपनी राजधानी के तौर पर स्थापित किया था, जबकि इसका निर्माण कार्य 1200 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था। आज के समय में यह एक मशहूर पर्यटक स्थल बन गया है, जहां दूर-दूर से लोग घूमने के लिए आते हैं और इस एतिहासिक जगह की खूबसूरती को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। 'होर' नामक पहाड़ की ढलान पर बने पेट्रा को यूनेस्को ने जहां विश्व धरोहर का दर्जा दिया है, तो वहीं बीबीसी ने अपनी 'मरने से पहले 40 देखने योग्य स्थान' की सूची में इसे शामिल किया हुआ है
इस एतिहासिक स्थल की पहली वास्तविक पुरातात्विक खुदाई वर्ष 1929 में की गई थी। वर्ष 1989 में फिल्म इंडियाना जोन्स और लास्ट क्रूसेड का फिल्मांकन इसी जगह पर किया गया था, जिसके बाद से यह जगह दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गई और यह जॉर्डन का सबसे बड़ा पर्यटक स्थल बन गया।
पेट्रा कब्रों, स्मारकों और पवित्र संरचनाओं का एक विशाल शहर है। यहां लगभग 800 नक्काशीदार कब्रें हैं। पेट्रा के आसपास 265 वर्ग मीटर में फैला एक पुरातत्व पार्क भी है। इसके अलावा पेट्रा थिएटर भी है, जहां पांच से आठ हजार लोगों के बैठने की जगह थी।
पेट्रा शहर में वाहनों को ले जाना प्रतिबंधित है, लेकिन गधे, घोड़ा गाड़ी और ऊंट को यहां लाया जा सकता है। दरअसल, इसका कारण यह भी है कि पेट्रा के अंदर जाने के लिए लगभग एक किलोमीटर की संकीर्ण घाटी से होकर गुजरना पड़ता है। यहां घूमने जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई या सितंबर से नवंबर महीना माना जाता है।
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Sri Ranganatha Swamy Temple Tamil Nadu श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर तमिलनाडु
तमिलनाडु में कावेरी और कालीदाम नदी के बीच टापू पर बना श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा पूजनीय मंदिर है और इसमें विष्णु, राम, कृष्ण व लक्ष्मी सभी मौजूद हैं। इसका विस्तार 155 एकड़ में है। हालांकि कंबोडिया के अंकोरवाट को भी सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। विस्तार में वह मंदिर 400 एकड़ में है, लेकिन उसे अब पर्यटन स्थल के रूप में ही जाना जाता है। वहां व्यापक स्तर पर धार्मिक आयोजन व पूजा-पाठ नहीं होता। रंगनाथ स्वामी मंदिर में हाल ही में दिवाली पूर्व का विशेष ओंजल उत्सव मनाया गया है।
मान्यता है कि विष्णु यहां राम के रूप में विराजित हैं। उन्हें पेरुमल और अजागिया मनावलन भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है ‘हमारे भगवान’ और ‘सुंदर वर’। लक्ष्मी यहां रंगनायकी कही जाती हैं। मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी पर होता है। संभवत: इतने देवताओं के इस मेल के कारण ही दक्षिण भारत में इस मंदिर का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जो 237 फीट का है।
मंदिर के पुजारी पार्थसारथी बताते हैं कि मुख्य मंदिर को रंगनाथ स्वामी मंदिर कहा जाता है, जो भगवान का शयन कक्ष है। इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा शयन मुद्रा में है। साथ ही विष्णु की खड़ी प्रतिमा, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीराम, नरसिम्हा के विविध रूप और वैष्णव संतों की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के दौर में हुआ था। 16वीं और 17वीं सदी में भी कई निर्माण कार्य किए गए।
रंगनाथ स्वामी मंदिर में दिवाली के पहले बड़ा उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की दूज से एकादशी तक नौ दिन का पर्व चलता है। इस पर्व को ओंजल उत्सव कहते हैं। श्रीरंगनाथस्वामी की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। वैदिक मंत्रों और तमिल गीतों से दुर्घटनाओं और दोषों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। साल में एक बार रंगनाथ श्रीरंगम के राजा बनते हैं। दिसंबर-जनवरी माह में 21 दिन का उत्सव होता है। इस दौरान रंगनाथ एक दिन के लिए राजा बनाए जाते हैं। उस दिन उन्हें रंगराजन पुकारा जाता है। मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी देवताओं के 80 पूजा स्थल हैं। दीवारों पर सिर्फ तमिल ही नहीं, संस्कृत, तेलुगु, मराठी, ओडिया और कन्नड़ भाषा में 800 से अधिक शिलालेख अंकित हैं। इनकी लिपि तमिल और ग्रंथ है। ग्रंथ लिपि का इस्तेमाल तमिल और मलयालम भाषाविद् छठी सदी से ही संस्कृत लिखने के लिए करते रहे हैं।
श्रीराम यहां विभीषण के सामने विष्णु रूप में प्रकट हुए थे
जनश्रुति है कि त्रेता युग में भगवान राम ने यहां लंबे समय तक आराधना की थी। लंका विजय के बाद जब वे वापस लौटे तो यह मंदिर उन्होंने विभीषण को सौंप दिया। विभीषण के सामने भगवान राम इसी स्थान पर विष्णु रूप में प्रकट हुए थे और कहा था कि वे यहां रंगनाथ के रूप में निवास करेंगे और लक्ष्मी रंगनायकी के रूप में रहेंगी।
श्रीरंगनायकी से मिलने जाते हैं रंगनाथ स्वामी
परिसर में दूसरा बड़ा मंदिर रंगनायकी का है, जिन्हें श्रीरंग नाचियार भी कहा जाता है। उनका एक नाम पाडी थंडा पथिनी भी है, जिसका शाब्दिक अर्थ है वो स्त्री जो कभी अपने घर की चौखट से बाहर नहीं जाती। मंदिर में बड़े धार्मिक उत्सवों पर रंगनाथ स्वामी की प्रतिमा को उनकी पत्नी रंग नाचियार के मंदिर में लाया जाता है। मंदिर के कई बड़े उत्सव और पूजा रंगनायकी के मंदिर में होते हैं। परंपरागत रूप से अन्य मंदिरों में विष्णु या पेरुमल की पूजा में लक्ष्मी के श्रीदेवी और भूदेवी रूपों के साथ होती है, लेकिन इस मंदिर में रंगनायकी प्रमुख हैं। इसलिए जब भी पूजा होती है, विष्णु के साथ रंगनायकी होती हैं, श्रीदेवी और भूदेवी पीछे की तरफ विराजित रहती हैं।
यहां गौतम ऋषि को दिए थे रंगनाथ ने दर्शन
मान्यता है कि गोदावरी तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उन्होंने गोदावरी नदी को देव लोक से बुलाया था। बाद में गौ हत्या के आरोप पर गौतम ऋषि को यह आश्रम छोड़ना पड़ा था। उन्होंने श्रीरंगम आकर भगवान विष्णु की तपस्या की। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर रंगनाथ स्वामी के रूप में उन्हें यहीं पर दर्शन दिए थे। बाद में यहां मंदिर का निर्माण हुआ, जो आज विशाल परिसर में बदल चुका है। मंदिर इतना बड़ा है कि पूरा दिन यहां बिताया जा सकता है।
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Angkor Wat Temple Cambodia (कंबोडिया) अंकोरवाट मंदिर
दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर
1100 साल से भी ज्यादा पुराना है अंकोरवाट मंदिर 213 फीट ऊंचा है इसका शिखर
वर्तमान कंबोडिया का प्राचीन नाम कंबुज था और वहां खमेर साम्राज्य था। खमेर भाषा में अंकोर शब्द का अर्थ राजधानी होता है। अंकोर शब्द संस्कृत के नगर शब्द से बना है। इसलिए अंकोर नाम का महानगर खमेर साम्राज्य की राजधानी रहा। खमेर साम्राज्य लगभग 9वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक अपने उत्कर्ष पर था। अंकोर महानगर में वर्ष 1010 से 1220 तक के काल में बहुत बड़ी संख्या में लोग रहते थे। आज इसी जगह अंकोरवाट का मंदिर स्थित है। जो कम्बोडिया का लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। अंकोर नगर के अवशेष श्याम रीप (सिमरिप) नामक आधुनिक नगर के दक्षिण में जंगलों और खेतों के बीच है। अंकोर क्षेत्र में करीब 1000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं। इनमें से कई मन्दिरों का पुनर्निर्माण हुआ है। अंकोरवाट मंदिर तथा अंकोरथोम सहित पूरे क्षेत्र को यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
• अंकोरथोम और अंकोरवाट नगर •
अंकोरथोम और अंकोरवाट प्राचीन कंबुज की राजधानी है। मान्यताओं के अनुसार इस राज्य का संस्थापक कौंडिन्य ब्राह्मण था जिसका नाम वहां के संस्कृत अभिलेख में मिलता है। 9वीं शताब्दी में जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा बना और उसी ने लगभग 860 ईस्वी में अंकोरथोम नाम से अपनी राजधानी की शुरुअात की जो करीब 40 सालों तक बनती रही और करीब 900 ईस्वी के आसपास तैयार हुई। इसके निर्माण के संबंध में कंबुज साहित्य में कईं घटनाएं भी मिलती हैं। अंकोरथोम नगर के ठीक बीच में एक विशाल शिव मंदिर था। जो कई शिखरों से मिलकर बना हुआ था। इनमें समाधि में बैठे शिव की मूर्तियां स्थापित थीं। आज का अंकोरथोम एक विशाल नगर का खंडहर है।
• मंदिर के शिलाचित्रों में बताई गई है रामकथा •
अंकोरवाट मंदिर बहुत विशाल है और यहां के शिलाचित्रों में रामकथा बहुत संक्षिप्त रूप में है। इन चित्रों में रावण वध से शुरुआत हुई है। इसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य मिलता है। इन दो प्रमुख घटनाओं के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण है। फिर अगले शिलाचित्रों में भगवान श्री राम स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए, सुग्रीव से श्रीराम की मैत्री, बाली-सुग्रीव युद्ध, अशोक वाटिका में हनुमान, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य देखने को मिलते हैं। इस अंकोरवाट मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण इत्यादि से संबंधित अनेक शिलाचित्र भी दिखाई देते हैं।
• अंकोरवाट मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें •
अंकोरवाट मंदिर के निर्माण का कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने शुरू किया पर वे इसे पूरा नहीं कर पाए तो इसके निर्माण का काम उनके उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में पूरा हुआ।
यह मन्दिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। इसमें तीन खण्ड हैं। हर खंड में 8 गुम्बज हैं। इनमें सुन्दर मूर्तियां हैं और ऊपर के खण्ड तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं। मुख्य मन्दिर तीसरे खण्ड की चौड़ी छत पर है। जिसका शिखर 213 फुट उंचा है। मन्दिर के चारों ओर पत्थर की दीवार का घेरा है जो पूर्व से पश्चिम की ओर करीब दो-तिहाई मील एवं उत्तर से दक्षिण की ओर आधे मील लंबा है। इस दीवार के बाद लगभग 700 फुट चौड़ी खाई है, जिस पर 36 फुट चौड़ा पुल है। इस पुल से पक्की सड़क मन्दिर के पहले खण्ड द्वार तक है
• अंकोरवाट मंदिर से जुड़े मुख्य बिंदु •
1. अंकोरवाट कंबोडिया में एक मंदिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है। जो 162.6 हेक्टेयर यानी करीब 2 किलोमीटर के क्षैत्रफल में फैला हुआ है।
2. यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था, जो धीरे-धीरे 12 वीं शताब्दी के अंत में बौद्ध मंदिर में बदल गया।
3. यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम यशोधरपुर था। इसका निर्माण 1112 से 1153 ई सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में हुआ था।
4. यह मंदिर लम्बे समय तक गुमनाम रहा। 19वीं शताब्दी के मध्य में एक फ्रांसीसी पुरातत्वविद हेनरी महोत के कारण अंकोरवाट मंदिर फिर से अस्तित्व में आया।
5. वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर के संरक्षण का जिम्मा संभाला था।
6. फ्रांस से आजादी मिलने के बाद अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया देश का प्रतीक बन गया। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है।
7. विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।
• कैसे पहुंचे कंबोडिया •
कंबोडिया जाने के दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु से फ्लाइट मिल जाती है। वीजा की बात करें तो यहां ऑन अराइवल वीजा मिल जाएगा। इसके अलावा ई वीजा भी ले सकते हैं। भारत से जाने वाली फ्लाइट्स कंबोडिया के फनोम पेन्ह इंटरनेशनल एयरपोर्ट और सीएम रेअप इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड करती हैं। एयरपोर्ट से अंगकोरवाट तक जाने के लिए बस और कैब मिलती हैं।
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